
राइट टू रिजेक्ट से दागियों पर लगेगा अंकुश
जागरण कार्यालय, बिजनौर: समाजसेवी अन्ना हजारे ने ‘राइट टू रिजेक्ट’ को लेकर लम्बी लड़ाई शुरू की थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में ‘राइट टू रिजेक्ट’ शामिल करने का फैसला सुनाया है। इसका खासोआम ने स्वागत किया है। यानि यदि मतदाता चुनाव में खडे़ किसी भी उम्मीदवार को पसंद नहीं करता है तो वह सभी के खिलाफ मत दे सकता है। नगर के गणमान्य नागरिकों ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना की है। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मतदाता ताकतवर होगा। राजकीय इंटर कालेज के अध्यापक एवं समाजसेवी संस्था नगर कल्याण समिति के अध्यक्ष अशोक निर्दोष का कहना है कि पहले मतदाता के लिए राजनैतिक नेतृत्व आदर्श होता था, जिस पर मतदाताओं को विश्वास रहता था, लेकिन जब से दागी उम्मीदवार चुनाव लड़ने लगे, तब से मतदाता को पार्टी पर विश्वास नहीं रहा। अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल, किरन बेदी जैसे लोग लम्बे समय से राइट टू रिजेक्ट की मांग कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सभी दल अच्छे उम्मीदवारों को चुनाव में उतारेंगे। संविधान अथवा चुनाव आयोग के पास चुनाव रद्द करने की कोई व्यवस्था नहीं है। इसलिए अधिक लोग यदि उम्मीदवारों को नापसंद करेंगे तो कम लोगों की पसंद का उम्मीदवार ही जीतेगा। उप्र माध्यमिक वित्त विहीन शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष सुरेंद्र प्रकाश का कहना है कि राइट टू रिजेक्ट से मतदान का प्रतिशत बढ़ेगा। सभी पार्टियां दागी उम्मीदवारों से परहेज करेंगी। साथ ही राजनैतिक दलों को पता चलेगा कि मतदाता उनके तथा उनके प्रत्याशियों के संबंध में क्या विचार रखते हैं। व्यापारी नेता विकास अग्रवाल का कहना है कि राइट टू रिजेक्ट के बाद इवीएम में ‘इनमें से कोई नहीं’ का भी बटन लगेगा। इससे सभी पार्टियों को दागी उम्मीदवारों से परहेज करना पडे़गा। दागी उम्मीदवार ही नहीं, पार्टी को भी अपनी स्थिति का पता चलेगा। उन्होंने कहा कि अनिवार्य मतदान को भी कानून बनना चाहिए। व्यापारी चौधरी रामौतार सिंह का कहना है कि इवीएम में उम्मीदवारों को नापसंद करने के अधिकार शामिल होने से मतदाता और ताकतवर होगा। इस अधिकार के मिलने से वोटिंग प्रतिशत बढे़गा। उम्मीदवारों को पता चलेगा कि मतदाता उसके संबंध में क्या विचार रखते हैं। पार्टी अच्छे उम्मीदवारों को ही प्रत्याशी बनाएगी।